आधुनिक शैक्षणिक परिवेश में गांधीगिरी की अहम भूमिका
द्वारा प्रोफेसर डॉ संजय कुमार
कुलपति , सिम्बायोसिस विश्वविद्यालय इंदौर
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, एक महान सामाजिक तथा राजनीतिक सुधारक, शांति-अहिंसा के प्रतीक, स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक थे. महात्मा की यह पक्ति, आधुनिक परिवेश में भीअत्यंत सार्थक है " हमें वह बदलाव होना चाहिए जो हम दुनिया में देखना चाहते हैं"
डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अपने एक बयान में जोरदार ढंग से कहा कि महात्मा गांधी अपने सत्य और अहिंसा के आदर्शों को साथ लेकर व्यक्तिगत देशों और महाद्वीपों के बीच अंतर को पिघला सकने में अपनी अहम भूमिका संपूर्ण विश्व के समक्ष रखा जिसका लोहा सबने माना । यह उनके अनुकरणीय नेतृत्व के गुणों, शुद्ध चरित्र, त्याग, सरलता, मुखरता और दृढ़ विश्वास की अदभूत शक्ति के कारण ही संभव हो सका। उनका जीवन दर्शन, ईश्वर के प्रति दृठ निष्ठा , सत्य, अहिंसा, प्रेम, भाईचारे, मानवता की निस्वार्थ सेवा और सत्याग्रह जैसे अनेकों स्तम्भों पर आश्रित था । वे एक युग द्रस्ट्रा थे। वे सिर्फ हिंदुस्तान के ही नेता नहीं बल्कि विश्व के लिए एक अद्भुत तथा विलक्षण व्यक्तित्व थे। उनके वयक्तित्व में चुम्बक की तरह असाधारण आकर्षण था जो स्वयं ही दुनिया के लोगों को मोहित तथा आकर्षित करता था । उनके व्यक्तित्व का हर गुण आज भी उतना ही समसामयिक तथा प्रेरणादायक है।
उन्होंने बहुत स्पष्ट रूप से इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए एक शक्तिशाली बल है। उन्होंने कहा कि शिक्षा ही एकमात्र हथियार है जिसके माध्यम से व्यक्तियों की नैतिकता सुनिश्चित की जा सकती है, सामाजिक जिम्मेदारी तय की जा सकती है और देश का आर्थिक विकास किया जा सकता है। अपनी मातृभूमि के लिए उनका जुनून और सपना इस देश को सौ प्रतिशत साक्षर बनाना था, जो गरीबी और कष्टों से मुक्त कर सकता है। उन्होंने विभिन्न मंचों पर नैतिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा के बारे में बात की। उन्होंने कहा "शिक्षा से मेरा मतलब है कि बच्चे और आदमी, शरीर, मन और आत्मिक रुप से तंदरुस्त हो। उन्होंने स्पष्ट किया कि मात्र साक्षरता अपने आप में प्राप्त करना, शिक्षा का सही सार नहीं है। शिक्षा को कौशल उन्मुख होना चाहिए जो प्रत्येक व्यक्ति को आत्मनिर्भर बना सके। महात्मा गाँधी की दृष्टि में शिक्षा का अर्थ है- सांस्कृतिक विकास, व्यक्ति का सामाजिक उत्थान और कल्याण, जीवन मूल्यों का परिशोधन तथा वयक्तित्व का सर्वांगीण विकास । उन्होंने अपने एक भाषण में कहा कि प्राथमिक शिक्षा हमारी मातृभाषा, गणित, सामाजिक विज्ञान, ड्राइंग, संगीत, कला, शिल्प इत्यदि me में होनी चाहिए। इसे बुनियादी शिक्षा का बुनियादी हिस्सा होना चाहिए।
आज उनकी पावन पुण्यतिथि पर शत शत नमन करें तथा के द्वारा दर्शाए हुए जीवन मूल्यों को आत्मसात तथा वरण करें। राष्ट्रीय नई शिक्षा नीति के दरमियान की गई पहल, महात्मा गांधी के सबल विचारों पर ही आधारित है। इस महान विभूति तथा भविष्य दृष्टा का सही अर्थ में मूल्यांकन करना हम जैसे ,साधारण व्यक्ति के कल्पना से परे है। एक बार पुनः इस विलक्षण युगपुरुष को शत सहस्त्र नमन।
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Gandhigiri's Important role in the modern Academic Environment By Professor Dr. Sanjay Kumar Vice-Chancellor, Symbiosis University Indore
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